Tuesday, September 9, 2008

मैं नहीं कवयित्री

मैं नहीं कवयित्री .
मन में द्वेव्श राग का वास,
कटु वचन सुन होती त्रास...
मन बुद्धि जो...
दूजे मनुष्य पर विपदा ढाहे...
नहीं सुन्दर वो मन मंदिर...
जो दुजों को नीच बताए...
मैं नहीं कवयित्री
कविता लिखना है एक पूजा
परम आत्मा से मिल जाना
सुन्दर स्पष्ट न हो मन जिसका...
वो कर पाए कैसे पूजा...

मैं नहीं कवयित्री ..
पर मुझको है कवयित्री बनना ....!!!

8 comments:

Vinay said...

your work is good. make effort to make it better. best of luck.

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

aapki kavita pasand aai. abhivyakti aur bhav bahut achcha hai. aap nisandeh kaviyatri hain.

Kavita Vachaknavee said...

स्वागत है.
खूब लिखें,अच्छा लिखें.

شہروز said...

आपकी पोस्ट देखी.
आपकी रचनात्मक प्रतिभा के हम कायल हुए.
जोर-कलम और ज्यादा.
कभी फ़ुर्सत मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें.
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://saajha-sarokar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/

श्यामल सुमन said...

अच्छा लगा। भाव भी अच्छे हैं। लिखते रहें।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Anonymous said...

kyon jhoot likhti hai, itni badhiya kavita aur aap kaviyatri nahi?

राजेंद्र माहेश्वरी said...

तीन बाते
1 आपको यह मालूम हैं कि आप क्या है।
2 आपको यह मालूम हैं कि आपको क्या बनना है।
3 सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि आपको यह भी मालूम हैं कि आपको जो बनना हैं वह कैसे बना जा सकेगा।

इसलिये आप अपने लक्ष्य में अवश्य सफल होंगी। हमारी शुभकामनाए

pinkcity jaipur city said...

its good.... nd very touchyyy

www.hamarivani.com