Thursday, November 25, 2010

तुम(१)


तुम ने,
जाने क्यूं हर बार चाहा,अपने रिशते को नाम देना,
और
मैने जिसे हर बार भूलना चाहा,तुमने दोहराया॰॰॰
क्यूं बांधते हो, रहने दो
मुक्त॰॰॰अपनी लय में युक्त
मेरे स्वप्न!!

2 comments:

POOJA... said...

काश, कम-सेकम सपनों को तो मुक्त आसमाँ प्राप्त होता...
बहुत प्यारी रचना...

सदा said...

बहुत ही खूबसूरत शब्‍द ।

www.hamarivani.com