Wednesday, April 13, 2011


किसी आवाज़ का मोहताज ना हो जाए तू,

है मुमकिन किसी को याद भी ना आए तू


सफ़र में होके मुसाफिर की तरह ही रहना,

क्या ज़रूरत किसी के दिल में उतर जाए तू


किया है उस से जो वादा तो निभा भी लेना,

दिल की बातों में आकर ना मुकर जाए तू.


बुरा नहीं यूँ बनाना नये रिश्ते लेकिन

अज़ल से हैं जो उन्हे ही निभा ना पाए तू


मरके बन जाना है गर्दिश का इक तारा लेकिन,

जीकर भी तो किसी घर का दिया जलाए तू


बदल रहा है ज़माना ज़रा तू भी तो बदल

क्यूँ बूढ़ी रस्म का हर वक़्त जशन मनाए तू

2 comments:

आशुतोष की कलम said...

बुरा नहीं यूँ बनाना नये रिश्ते लेकिन
अज़ल से हैं जो उन्हे ही निभा ना पाए तू
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बहुत बढियां लिखती रहें..
कृपया कमेन्ट बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेसन हटा दें..

nutan vyas said...

Shukriya Aashutosh ji..

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