Wednesday, August 10, 2011

चुप

तुम कितना चुप रहती हो
जब चुप रहती हो क्या सोचती हो
या चुप्पी के लम्हो मे तुम कुछ
सोच भी पाती नहीं हो
या सोच के समन्दर मे खो कर
खुद को खोज ही पाती नहीं हो
और इसलिये शायद कुछ
बोल ही पाती नहीं हो……॥

6 comments:

Dr Varsha Singh said...

मन को उद्वेलित करने वाली मार्मिक कविता....

Anonymous said...

"समन्दर मे खो कर खुद को खोज ही पाती नहीं हो
और इसलिये शायद कुछ बोल ही पाती नहीं हो"

वाह - बहुत खूब

S.N SHUKLA said...

सुन्दर रचना, बहुत सार्थक प्रस्तुति
, स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

Sunil Kumar said...

भावमयी रचना अच्छी लगी , बधाई

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Gahan Abhivykti...

रश्मि प्रभा... said...

http://urvija.parikalpnaa.com/2011/08/blog-post_19.html

www.hamarivani.com