Thursday, September 1, 2011

खामोशी...

यह खामोशी भी तो      
    जोडती है मुझे तुमसे          
बहती हवा ,
और कहीं दूर
             बादलों की गड़गड़हट          
 सुखे पत्तों पर कदमों की  
                    सरसराहट...
 दूर किसी मंदिर मे    
                बजती घंटियां ।।।
 और रंगे हिना।।।
 मेरे लफ़ज़ों के अलावा सबकुछ,
 जोडता है मुझे तुम से।।।!

2 comments:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

आपका प्रयास सराहनीय है

Nidhi said...

sundar...waise bhii kaun jod raha hai..isse kahin zyada mahatvapoorna hai JUDNAA

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