Thursday, September 1, 2011

  कुछ.... था नया

सर्द हवा    
    लुटती सबा,
और भी कुछ     
   था नया

 भीगी पलके    
  जगी रातें ,
और तो मिलता      
    भी क्या

बेबसी भी   
    दीवानगी भी ,
उस के सिवा      
  सबकुछ मिला

 पूछ्ती है      
  खामोशी भी  ,
 मुझ से उसका        
  ही पता

 लम्हा लम्हा      
  ठहर  गयी,
 मेरा ऐसा     
     हाल हुवा । 

1 comment:

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बेबसी भी
दीवानगी भी ,
उस के सिवा
सबकुछ मिला

बढ़िया रचना...
सादर...

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