आडम्बर रच रही थी
औरों पर अपनी कविता का
पाठ मढ़ रही थी
वहीँ भीड़ में कुछ चेहरे
ओझिल बोझिल से
प्रश्न करने को बैठे थे
शिथिल से ......
क्या तुम ही जान पाती हो
क्या लिख लाती हो
क्या कह जाती हो
कुछ भावों को
क्लिष्ट शब्दों में लपेटकर
स्वप्न अपने ही समेटकर
यहाँ परोस जाती हो
तुम ही समझाओ हम को
कैसे कह दें तुम को
कवयित्री
क्या है तुम्हारा अपना
अनुभव या अनुभूति ?
है केवल ...नश्वर ...ये स्वर ... !
और बहुत स्वांग...झोली भर !
10 comments:
बहुत ही बढ़िया।
सादर
waah...
बहुत बढिया रचना ...
क्या बात है...!!
कल 25/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
sundar....
जो मौन धरा का पढ़ जाये
पंछी बन अम्बर को गाये
छांवों में भीगे वो जाकर
बरसे धूप कभी तो नहाये
वो ही कवि सर्जक कहलाये
पर दुनिया कब समझने पाये...
अच्छी प्रस्तुति...
सादर...
बे मिसाल ...बधाई
Sab ka bahut bahut dhanyawaad!
badiya abhivaykti....
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