Friday, November 25, 2011

नियति...

नियति को भोगना
नियति है तो
क्यूँ रूठना
जूझना हो ....
केवल चलना
नियति के मार्ग पर
नियति को ओढ़ कर
नहीं थकना
कहीं रुकना
है सृजनता
नव बीज बोया ...उसने
नियति में ही
और नियति के
पार भी

8 comments:

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

.... नियति के पार भी....

बहुत सुन्दर...
सादर...

विभूति" said...

बेहतरीन शब्द समायोजन..... भावपूर्ण अभिवयक्ति....

Mamta Bajpai said...

बहत सुन्दर रचना ..बधाई

Anupama Tripathi said...

sakaratmak hai rachna ..

केवल राम said...

वाह यह नियति ...आपने बहुत गंभीर बात को सहज में ही कह दिया ...!

S.N SHUKLA said...

इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.

Asha Joglekar said...

नियती को स्वीकार कर लें तो जिंदगी आसान हो जाये । सुंदर प्रस्तुति ।

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर शब्द समायोजन..... भावपूर्ण अभिवयक्ति....

www.hamarivani.com