Sunday, December 11, 2011

हाइकु...

दर्पण टूटा
मुझ से मन रूठा
क्या पहचान

विडम्बना ये
जग झूठा झंझट
राग द्वेश ये

सिंगार धर
सुनती बांसुरिया
राधिका प्यारी

चंदन टीका
सूरज सा दमका
जाग्रत धरा

सुमन नए
टूट के हाए गिरे
कुचले गए

माला पिरोई
प्रिय गठबंधन
ईश्वर संग

मन सुमन
विचार तितली से
सुन्दर क्षण

पुष्प सी खिली
तितली संग नाची
जन्मों की प्यासी

सुन्दर बेल
दीवार पर चढी
अजब खेल

6 comments:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 12-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

ऋता शेखर 'मधु' said...

सभी हाइकु बहत सुन्दर!

दिलबागसिंह विर्क said...

अति सुंदर

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बेल

चढ़ी जितना
जानी उतना
विस्तृत संसार।

Pallavi saxena said...

सुंदर रचना ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत हैhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर हाईकू रचनाये....
सादर...

www.hamarivani.com