मुझ से मन रूठा
क्या पहचान
विडम्बना ये
जग झूठा झंझट
राग द्वेश ये
सिंगार धर
सुनती बांसुरिया
राधिका प्यारी
चंदन टीका
सूरज सा दमका
जाग्रत धरा
सुमन नए
टूट के हाए गिरे
कुचले गए
माला पिरोई
प्रिय गठबंधन
ईश्वर संग
मन सुमन
विचार तितली से
सुन्दर क्षण
पुष्प सी खिली
तितली संग नाची
जन्मों की प्यासी
सुन्दर बेल
दीवार पर चढी
अजब खेल
टूट के हाए गिरे
कुचले गए
माला पिरोई
प्रिय गठबंधन
ईश्वर संग
मन सुमन
विचार तितली से
सुन्दर क्षण
पुष्प सी खिली
तितली संग नाची
जन्मों की प्यासी
सुन्दर बेल
दीवार पर चढी
अजब खेल
6 comments:
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 12-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
सभी हाइकु बहत सुन्दर!
अति सुंदर
बेल
चढ़ी जितना
जानी उतना
विस्तृत संसार।
सुंदर रचना ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत हैhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
सुन्दर हाईकू रचनाये....
सादर...
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