Wednesday, December 21, 2011

नव वर्ष तुम फिर आओगे !

मैंने पूछा
नव वर्ष तुम फिर आओगे !
क्या लाओगे?
स्वार्थ पुराने उन्हें भुनाने
या फिर कुछ नव ताने बाने
मुझे डराने .....?
वो बोला
मैं तो संघर्ष हूँ
नव वर्ष हूँ
जैसे कर्म तुम्हारे होंगे
वैसा ही तो फल लाऊंगा
सुख दुःख दोनों ही लाऊंगा
डरती क्यूँ हो, सहती क्यूँ हो
नई उम्मीद पर
नए स्वप्न मैं दिखलाऊंगा
विपदा सारी हर जाऊँगा
क्रोध लोभ और मोह ,दंभ के
झूठे चटकारे मत भरना
केवल अपना छोड़ ज़रा सा
औरों का भी चिंतन करना
और जो तुम "नूतन" हो तो
बन कर नूतन ही रहना

1 comment:

विभूति" said...

बेहतरीन अभिवयक्ति.....

www.hamarivani.com