मैं क्यूँ लिखूं
नए साल में अपवाद पुराने
रोती माएँ
ठंडे चूल्हे
भूखे बच्चे
कुछ लोगों की भ्रष्ट सोच पर
शहीद होते
सैनिक सच्चे
क्यूँ लिखूं मैं
जब जानू ना
सूखे खेत की रूठी हरियाली
अपने घर के एक कोने में
बैठकर पीते....
चाय की प्याली ....
मेरा लिखना भर लौटा देगा
क्या लुटी हुई अस्मिताएं ?
फिर भला क्यूँ कर जाऊं मैं
पाखंडी औपचारिकताएं ?
नए साल में नई सोच एक
मुझ में विकसित कर देना
पीड़ पराई जान सकूँ
बस इतनी सी तो है प्रार्थना
कुछ ना हो तो मेरा कागज़
कोरा ही तुम रहने देना !
11 comments:
बहुत सुन्दर, बधाई.
पधारें मेरे ब्लॉग पर भी, आभारी होऊंगा.
बहुत सार्थक विचारोत्प्रेरक रचना...
सादर बधाई....
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
बहुत सुन्दर रचना ..एक बार मेने भी ऐसा ही कुछ लिखा था कुछ अंश पेश करती हूँ
मैं सोचती हूँ ,कुछ लिखू
पर क्या लिखूँ ?कैसे लिखूँ
वो कौन से अल्फाज लूँ
जो आज की कवता लिखूँ
गाँव की कविता लिखूँ
या गीत कुछ किशान के
नीर की सुचिता लिखूँ
या खेत लिखूँ धान के
टूटते नाते लिखूँ या
फूटते आँसू लिखूँ
मैं ........
भई बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
मुझ में विकसित कर देना
पीड़ पराई जान सकूँ
बस इतनी सी तो है प्रार्थना
कुछ ना हो तो मेरा कागज़
कोरा ही तुम रहने देना !
Bahut Sundar....
www.poeticprakash.com
क्यों लिखूं कह कर भी बहुत कुछ लिख दिया ... सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर...
सार्थक प्रस्तुति..
बधाई.
नए साल में नई सोच एक
मुझ में विकसित कर देना
पीड़ पराई जान सकूँ
badhai nootan ji ak sundar srijan ke liye abhar.
बहुत बढ़िया अभिवयक्ति...
नए साल में नई सोच एक
मुझ में विकसित कर देना
पीड़ पराई जान सकूँ
बस इतनी सी तो है प्रार्थना
कुछ ना हो तो मेरा कागज़
कोरा ही तुम रहने देना !
bahut sundar....
naya saal...nai soch...!
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