Monday, March 26, 2012

सूक्ष्म


कितना सूक्ष्म है
यह भेद
शाश्वत और निरंतर ...
हो जाने में
जटिल भी तो कितना
हर क्षण
जब हो
वायु जल आकाश अग्नि
और पृथ्वी से
परे हो जाने को व्याकुल
यह चित्त.......!!

4 comments:

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

मिट कर भी संभव कहाँ, इनसे होना भिन्न...

सादर।

Kailash Sharma said...

बहुत गहन चिंतन...सुंदर अभिव्यक्ति..

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन


सादर

Nidhi said...

पाँचों तत्त्व...पंचतत्त्व में............

www.hamarivani.com