मिटटी तो उपजाऊ थी...
पर लुट कर उस में खोया कौन
भूख निगलता
आप ही गलता
सरल भाव सा
सड़े घाव सा
उसे कोई समझाओ जी
मेघ न बरसा रोया मौन
मिटटी तो उपजाऊ थी
पर लुट कर उस में खोया कौन
मूर्छित तन मन
किंचित कण कण
बीज बो रहा
भाग्य सो रहा
कांटो से उसे छुड़ाओ भी
खेत बंजर अमीर हैं लॉन
मिटटी तो उपजाऊ थी
पर लुट कर उस में खोया कौन
4 comments:
मिटटी तो उपजाऊ थी
पर लुट कर उस में खोया कौन
बढ़िया बिम्ब विधान .बढ़िया रचना .
वाह वाह क्या बात है! बधाई
उल्फ़त का असर देखेंगे!
भावो को रचना में सजाया है आपने.....
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