जीना है
इन्द्रधनुष के पार
व्यापक
दिखता जो
दिव्य जीवन
वैसे ही
और
धरा के साथ बंधकर
ओस की बूँद
जैसे भी
परन्तु कहाँ सुनिश्चित रहा
अब तक
नियति का सरस खेला
कौन बीज
कैसे बोया जाएगा
बढ़ रहेगा ओट किसकी
और कैसे कब मिलेगा
धूप छाँव का संरक्षण
या असमय
हो जाए भक्षण
कौन जाने ....
मार्ग तो है ही कठिन पर
जी रहा फिर भी कण कण
हो रहा प्रस्फुटित हर क्षण
पथिक बन जीने को आतुर
नवांकुर ....
इन्द्रधनुष के पार
व्यापक
दिखता जो
दिव्य जीवन
वैसे ही
और
धरा के साथ बंधकर
ओस की बूँद
जैसे भी
परन्तु कहाँ सुनिश्चित रहा
अब तक
नियति का सरस खेला
कौन बीज
कैसे बोया जाएगा
बढ़ रहेगा ओट किसकी
और कैसे कब मिलेगा
धूप छाँव का संरक्षण
या असमय
हो जाए भक्षण
कौन जाने ....
मार्ग तो है ही कठिन पर
जी रहा फिर भी कण कण
हो रहा प्रस्फुटित हर क्षण
पथिक बन जीने को आतुर
नवांकुर ....
9 comments:
कौन जाने ....
मार्ग तो है ही कठिन पर
जी रहा फिर भी कण कण
हो रहा प्रस्फुटित हर क्षण
पथिक बन जीने को आतुर
नवांकुर ....
सुंदर अभिव्यक्ति,......
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....
बेहतरीन प्रस्तुति...
Bahut hi khubsurat....
कल 21/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति....
बेहतरीन प्रस्तुति।
बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति....
सादर बधाई.
बहुत सुन्दर भाव ...उतनी ही सुन्दर अभिव्यक्ति
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