Tuesday, May 22, 2012

गाए मन

मौन मुखर कर
गाए मन

प्रणय राग पर
बंधन बांधे
सृजन सुरीले
दर्शन मांगे
स्वर अंजन धर
जाए मन
मौन मुखर कर
गाए मन

तपती धरती
प्यासी मरती
बिलख बिलख
मेघा को तरसी
स्नेह सरित
बरसाए मन
मौन मुखर कर
गाये मन

ज्ञान ध्यान सम
अलख जगाए
सरल स्वप्न
नूतन बन जाए
नव आशा भर
जाये मन
मौन मुखर कर
गाए मन

4 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

ज्ञान ध्यान सम
अलख जगाए
सरल स्वप्न
नूतन बन जाए
नव आशा भर
जाये मन
मौन मुखर कर
गाए मन,,,,,,

बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,

RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

क्या बात है!!

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर गीत ... मौन का गीत ...

सदा said...

वाह ...बहुत बढिया।

www.hamarivani.com