शब्दों की है भीड़
मगर
क्या शब्दों का है चयन ...
सरल ..... ?
जगते -सोते
जीते -मरते
कविता बुनते आद्र नयन...
नहीं कटे
पलछिन
ये दिन
... है आन पड़ी उलझन....
हर जाप अधूरा.. छंद बिना....
और
प्रभु बिना ...जीवन !....
मगर
क्या शब्दों का है चयन ...
सरल ..... ?
जगते -सोते
जीते -मरते
कविता बुनते आद्र नयन...
नहीं कटे
पलछिन
ये दिन
... है आन पड़ी उलझन....
हर जाप अधूरा.. छंद बिना....
और
प्रभु बिना ...जीवन !....
2 comments:
बहुत सुन्दर...
कविता बुनते आदर नयन..जप अधुरा छंद बिना.. सुन्दर पंक्तिया है.
आपकी हर कविता की तरह यहाँ भी एक अव्यक्त प्यास,वियोग और विरह की पीड़ा साफ दिखती है,
एक श्रेष्ठ कविता.शुभकामनाये.
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