Tuesday, July 17, 2012

भ्रमित है

भ्रमित है...
असीमता के ओर छोर से
संघर्षरत ...
विलोम पटल पर,
विकट छंद की बाट जोहता
अलसाता शब्दकोश मेरा....
ऐसे में फिर
हो पाए...
कैसे कविता...?

3 comments:

yugal said...

नूतन जी,कविता ही तो है, जो नए छंद भी रचती है, और छद्म को तोडती भी है.फिर कैसा भ्रम,यह समय तो शब्द को नए प्राण देने का है, एक समर्थ और संवेदनशील कवि का शब्द कोष भला कैसे अलसा सकता है? शुभकामनाये.

yugal said...

सार्थक होता, यदि आप भी प्रतिक्रियाओ पर कुछ कहती.

शिवनाथ कुमार said...

अलसाते शब्दकोष से
आपने इतनी अच्छी कविता लिख दी :-)
बहुत सुंदर रचना !
सादर !

www.hamarivani.com