Thursday, July 26, 2012

बरखा रानी तुम रूठी हो क्यूँ

बरखा रानी तुम रूठी हो क्यूँ

बादल की घनघोर घटाएँ
जब आई हैं आशा बन कर
निर्विकार कुछ निर्विरोध ही
बिखरो न तुम भी तो मुझ पर
क्या ठानी यह बुझी सी हो क्यूँ
बरखा रानी तुम रूठी हो क्यूँ

गीत सुनाओ न तुम भी तो
घर की मेरे छत पर आकर
टप टप टिप टिप वाद बजाओ
छम छपाक छम राग बनाकर
मनमानी तुम करती हो क्यूँ
बरखा रानी यूं रूठी हो क्यूँ

सूखे तरुवर मिट्टी प्यासी
तृप्त कहाँ है अंतस भी तो
चातक सी वो रिक्त नयन बन
ढूंढ रही हूँ केवल तुम को
बंदनी बन रहती हो क्यूँ
बरखा रानी तुम रूठी हो क्यूँ

5 comments:

शिवनाथ कुमार said...

बरखा रानी सही में रूठी लगती है इस बार .....
सुंदर रचना ..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

चातक सी वो रिक्त नयन बन
ढूंढ रही हूँ केवल तुम को
बंदनी बन रहती हो क्यूँ
बरखा रानी तुम रूठी हो क्यूँ,,,,,

बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,,
मै आपके पोस्ट पर हमेशा आता हूँ किन्तु आप मेरे पोस्ट नही आती,,,आइये स्वागत है,,,,

RECENT POST,,,इन्तजार,,,

Vinay said...

बहुत ही सुंदर काव्य है

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तकनीक दृष्टा - ब्लॉगिंग की तकनीकि बातें

yugal said...

नूतन जी,
आसमान को तकती,बारिश की मनुहार करती,सुन्दर कविता.सच कहियेगा बर्षा रानी भला रूठ क्यों रही है.?
बधाइयाँ.

विभूति" said...

बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति........

www.hamarivani.com