Sunday, July 29, 2012

सार्थक ....!



हाँ!
यह भी तो सत्य है,
लिखना पढना ,कुछ भी तो करना नहीं होता...
सब ने कहा,
"समय का विनाश करती हो,
जीवन बिना लक्ष्य के
कैसे निर्वाह करती हो....?"
परन्तु मैं इस प्रश्न का उत्तर दूँ भी क्यूँ
क्यूँ अपने सरल,
संवेदनशील मन पर
लेकर बोझ चलूँ !
हाँ , है मुझे आनंद देता ,
बस ,बैठना....,
चहुँ ओर मंडराते
दृश्यों , स्मृतियों,
विचारों को
सुन्दर गढ़िले शब्दों में
संजोना केवल ...
लगता है सुखमई
..... और सार्थक भी...!!!

5 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हाँ , है मुझे आनंद देता ,
बस ,बैठना....,
चहुँ ओर मंडराते
दृश्यों , स्मृतियों,
विचारों को
सुन्दर गढ़िले शब्दों में
संजोना केवल ...
लगता है सुखमई
..... और सार्थक भी...!!!


शब्दों को गढ़ने पढने का अपना ही आनंद है ...सुंदर रचना

S.N SHUKLA said...

सुन्दर रचना , बहुत सुन्दर भाव

रश्मि प्रभा... said...

waah... bahut khoob

Anonymous said...

"मुझे आनंद देता ,
बस ,बैठना....,
चहुँ ओर मंडराते
दृश्यों , स्मृतियों,
विचारों को
सुन्दर गढ़िले शब्दों में
संजोना केवल ...
लगता है सुखमई
..... और सार्थक भी...!!!"

सुखद अनुभूति

nutan vyas said...

Dhanyawaad!!

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