Thursday, August 30, 2012

स्वर

तुम स्वर हो जाना
और मैं ....
मैं  तुम्हारे स्वर का
अभिमत... किन्तु इस होने
न होने के प्रक्रम में
इतना भर सचेत रहना ...
कहीं स्वर से सत्य विलुप्त  न हो जाए
कि अपनी गूँज केवल एक
शरणार्थी बन ,लक्ष्यरहित, न विस्मित हो
 कहीं ...भटक जाए.....!

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