Thursday, June 20, 2013

विषैली

विषैली हो गईं हैं
ज़बाने
सोच
यहाँ तक की
स्मृतियाँ भी
मशीनों पर लगी जंग सी
कडवाहट ही फैली है
अब हर ओर
कितना शोर
और
जो संबंधों में तकनीक
समाई है
सो विलुप्त है अब बचा कूचा
सामंजस्य का बोध
लो अब ढोना
मानवता की मृत
भावनाओं का बोझ
अंत तक  .....

2 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक भावपूर्ण रचना...

Satish Saxena said...

बेहतर अभिव्यक्ति ..
आपकी कलम को शुभकामनायें !

www.hamarivani.com