Sunday, June 1, 2014

प्रार्थना किससे करूँ ......

कविता ...पुल बाँधती थी
भ्रम की रस्सियों से ..
कभी अट्टहास भर थी
कभी ...
हुंकारती सी
कभी गोल गोल
अपनी ही परीधि में
खोजती..
जाने क्या ....
पर अब कविता
गुट बाँधती है..
काटती है अपनी क़िस्में
और छाँटती है
जुडने और जोड़ने की
सब कलाएँ ...
तुम सुन रहे थे...
सहज होने की सभी
संभावनाएँ ,थीं बचीं
अब तुम नहीं तो
सोचती हूँ .... प्रार्थना
किससे करूँ ...








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