Wednesday, June 4, 2014

झुक रहे कंधे

अब तुम्हारी तंग चाल
मेरे  झुक रहे , कंधे हुए
 झुर्रियों में क़ैद सभी
अतीत के क़िस्से हुए
उफानों  और घाटों का
लेखा जोखा सा हुआ
खुरदुरापन
तुम्हारी हथेलियों का
क्यों
गुज़रना  ही रहता है
बार बार
उन्हीं
 स्मृतियों से
जहाँ तुम चलते थे आगे
मैं
तुम्हारे ठीक पीछे


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