छलनी से छान लाओ ना
वो मेरे हिस्से का मीठापन
कि सोच की व्याधि
धरातल पर
खार बिखरे हैं
कि चुभते हैं चुभाते हैं
कई सौ मन बनाते हैं
वो सारे फूल से थे
शब्द कहीं खो गए हैं
कि जिनके रंग मेरे थे
वो जिनकी ख़ुशबुओं में जी रही थी
रोज़ थोड़ा और थोड़ा
उन शब्दों ने भला
क्यों मुझ को छोड़ा
अब ये
अबोला स्पर्श तुम्हारा जब
नई उम्मीद लाया है
तो मुझ को और जीना है
अभी कुछ और जीना है
तो तुम ही लाओ ढूँढ कर वो
मेरे हिस्से का मीठापन
वो मेरे हिस्से का मीठापन
कि सोच की व्याधि
धरातल पर
खार बिखरे हैं
कि चुभते हैं चुभाते हैं
कई सौ मन बनाते हैं
वो सारे फूल से थे
शब्द कहीं खो गए हैं
कि जिनके रंग मेरे थे
वो जिनकी ख़ुशबुओं में जी रही थी
रोज़ थोड़ा और थोड़ा
उन शब्दों ने भला
क्यों मुझ को छोड़ा
अब ये
अबोला स्पर्श तुम्हारा जब
नई उम्मीद लाया है
तो मुझ को और जीना है
अभी कुछ और जीना है
तो तुम ही लाओ ढूँढ कर वो
मेरे हिस्से का मीठापन
1 comment:
इस रचना के लिए हमारा नमन स्वीकार करें
एक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_
http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html
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