Saturday, February 11, 2017

सब कुछ तो वही है

बडा उदास महीना है
सुबह सूरज पेड़ों से झाँकता
आवारा दिन बुनता है
पिछले रात की अधूरी नींद में
अनमने सपनों के उन्वान हवा के सर्द झोंकों में कभी गालों कभी आँखों 
में क़तरा क़तरा उतरते हैं
अभी चुप है ज़रा दिन
और दिल भी उचाट
खो दिया जो इश्क़ उसको रो लूँ जी भर कर
मगर
पा लेने का भी तो था भरम भर
नए फूलों में रंग तो मगर वही हैं ना
वही उजला हरापन
बस यही आशिक उदासी है जो नई है
और सब कुछ तो वही है
www.hamarivani.com