मेरी उलझनों को तरतीब दे कर, लौट जाना एक हंसी ले कर. ज़ख्म लगते ही तो भर जाता है, वार अबके ज़िन्दगी पीछे कर. तेरे शहर का भी है अजीब निजाम, खुश है मुझको आइना दे कर. मुझसे क्या पूछे मेरे बारेमें सवाल ये मेरे अपनों से कर. सोना,उठाना,जीना,मरना'शीरीं', कभी ये सिलसिला अपने लिए कर.