नारी जीवन वृक्ष सा ,व्यर्थ न कर संताप
कितने आंसू पी रहा , एक बेटी का बाप
मान रहा वो आज भी ,लड़की को अभिशाप
नहीं सरल रहना वहां ,हो निश्छल निष्पाप
सब लेकर जीते जहाँ ,अधम सोच की छाप
साधन पथ पर बढ़ चला ,फिर भी मन घबराए
जोत जले जो भक्ति की ,श्याम भी मिल जाए!
मैला इसको तू करे, धरा न कूड़ा दान
आश्रय सबको दे रही ,रखले थोडा मान
19 comments:
साधन पथ पर बढ़ चला ,फिर भी मन घबराए
जोत जले जो भक्ति की ,श्याम भी मिल जाए!
बहुत ही बढ़िया।
सादर
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.
.
कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें, आभारी होऊंगा.
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
दोहे बहुत अच्छे लगे |बधाई |
आशा
सार्थक
आभार
कितने आंसू पी रहा , एक बेटी का बाप
मान रहा वो आज भी ,लड़की को अभिशाप
yahi to aj ke yug ka sabse bada abhishap hai mathur ji .....
bahut badiya bhavpurn dohe..
मौसम आये जाए पर ,सब सहना चुपचाप
नारी जीवन वृक्ष सा ,व्यर्थ न कर संताप
धारिणी (धरनी ,धरती )की तरह ही है नारी .
बहुत खुबसूरत सार्थक दोहे..
bahut shandar saarthak dohe.
कल 17/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
कितने आंसू पी रहा , एक बेटी का बाप
मान रहा वो आज भी ,लड़की को अभिशाप
बेहतरीन दोहे
Bahut achchi panktiyan!
सुन्दर दोहे.... बधाई....
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)
सुन्दर दोहे.
सादर/
बहुत सुन्दर |
सटीक और सार्थक दोहे ॥
बहुत सुन्दर सार्थक दोहे....
शुभकामनाएँ..
bahut hi acha likha aapne..
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