ऊर्जा का स्रोत तुम
दर्प का हूँ भार मैं
विशाल तुम ह्रदय लिए
सूर्य भांति तप रहे
दूसरों के ही लिए
निःस्वार्थ जीवन जप रहे
क्षमा की एक जोत तुम
त्रुटियों का संसार मैं
ऊर्जा का स्रोत तुम ....
अश्रुओं को सोक लूँ
उम्र ढलती रोक लूँ
बिन तुम्हारे ओ पिता
कैसे जीवन सोच लूँ
सत्य ओत प्रोत तुम
झूठा अहंकार मैं
ऊर्जा का स्रोत तुम...
सूर्य जैसे है सदा
धूप छाँव से बंधा
स्वर्ण सी आभा लिए
तुम दमकना सर्वदा
ज्ञान का उद्योत तुम
विराट अंधकार मैं
ऊर्जा का स्रोत तुम ....
8 comments:
ज्ञान का उद्योत तुम
विराट अंधकार मैं
बहुत ही सुन्दर गीत...
सादर बधाई
Excellent...
Bahut sundar....
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bahut bhavuk rachna aabhar
बहुत ही खुबसूरत...
बहुत सुंदर गीत,बेहतरीन। , आभार ......
क्षमा की एक जोत तुम ,
त्रुटियों का संसार , मैं.... !
सत्य ओत प्रोत तुम ,
झूठा अहंकार , मैं.... !
ज्ञान का उद्योत तुम
विराट अंधकार , मैं.... !
बहुत कुछ सिखाती रचना..... !!
बहुत बढ़िया गीत..
विनम्र भावनाएं लिए..
बहुत ही सटीक और भावपूर्ण रचना। धन्यवाद।
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