नियति है तो
क्यूँ रूठना
जूझना हो ....
केवल चलना
नियति के मार्ग पर
नियति को ओढ़ कर
नहीं थकना
कहीं रुकना
है सृजनता
नव बीज बोया ...उसने
नियति में ही
और नियति के
पार भी
शब्द मेरा उत्साह ... छंद मेरी वेदना , जीवन मरण ये असाध्य दुःख , केवल कविता ही आत्म सुख !!!