शब्द मेरा उत्साह ...
छंद मेरी वेदना ,
जीवन मरण ये असाध्य दुःख ,
केवल कविता ही आत्म सुख !!!
Monday, March 26, 2012
सूक्ष्म
कितना सूक्ष्म है यह भेद शाश्वत और निरंतर ... हो जाने में जटिल भी तो कितना हर क्षण जब हो वायु जल आकाश अग्नि और पृथ्वी से परे हो जाने को व्याकुल यह चित्त.......!!
4 comments:
मिट कर भी संभव कहाँ, इनसे होना भिन्न...
सादर।
बहुत गहन चिंतन...सुंदर अभिव्यक्ति..
बेहतरीन
सादर
पाँचों तत्त्व...पंचतत्त्व में............
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