बडा उदास महीना है
सुबह सूरज पेड़ों से झाँकता
आवारा दिन बुनता है
पिछले रात की अधूरी नींद में
अनमने सपनों के उन्वान हवा के सर्द झोंकों में कभी गालों कभी आँखों
में क़तरा क़तरा उतरते हैं
अभी चुप है ज़रा दिन
और दिल भी उचाट
खो दिया जो इश्क़ उसको रो लूँ जी भर कर
मगर
पा लेने का भी तो था भरम भर
नए फूलों में रंग तो मगर वही हैं ना
वही उजला हरापन
बस यही आशिक उदासी है जो नई है
और सब कुछ तो वही है
सुबह सूरज पेड़ों से झाँकता
आवारा दिन बुनता है
पिछले रात की अधूरी नींद में
अनमने सपनों के उन्वान हवा के सर्द झोंकों में कभी गालों कभी आँखों
में क़तरा क़तरा उतरते हैं
अभी चुप है ज़रा दिन
और दिल भी उचाट
खो दिया जो इश्क़ उसको रो लूँ जी भर कर
मगर
पा लेने का भी तो था भरम भर
नए फूलों में रंग तो मगर वही हैं ना
वही उजला हरापन
बस यही आशिक उदासी है जो नई है
और सब कुछ तो वही है