क्या तुम वही हो,
हज़ारों ख़्वाब जिसके मैंने कुछ पल मे ही बुन डाले,
वो जिसकी सांसों की सरगम सुनहरी रेशमी चादर की तरह,
मुझको हर रात ढक देती,
और तनहाई में भी रोने नहीं देती
हां ,
तुम वही हो जो मुझ में जीता है,
लहर की तरह जो मेरी हर सांस में उठता है फिर बिखर जाता है।
हां तुम वही तो हो!
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