कोई पूर्णता
कभी साधी गई है भला
कि जो साधना है मुझको
सागर
जो है सदियों से वही
और मैं
एक सीमित काल सी
हर बार नई
कैसे निकलूँ
सीपियों की थाह पाने
मोतियों की पाल बाँधे ....
वह समृद्ध अपने आप में
सदा
और मैंने सोचा
अनादि से
मेरी
प्रतीक्षा भर करता हुआ
कभी साधी गई है भला
कि जो साधना है मुझको
सागर
जो है सदियों से वही
और मैं
एक सीमित काल सी
हर बार नई
कैसे निकलूँ
सीपियों की थाह पाने
मोतियों की पाल बाँधे ....
वह समृद्ध अपने आप में
सदा
और मैंने सोचा
अनादि से
मेरी
प्रतीक्षा भर करता हुआ
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