शब्द मेरा उत्साह ... छंद मेरी वेदना , जीवन मरण ये असाध्य दुःख , केवल कविता ही आत्म सुख !!!
कुछ स्वाँस भर शब्द
बचे रहे हैं मेरे भीतर
नए भोर की नई नवेली
धड़कन बन कर
शोर मचाते हूक जगाते क़र्ज़ उठाते
मिट्टी ख़ुशबू प्राण
समाहित
हर क्षण भर को जीते जाते
लो पृथ्वी के सब गुण दोष
कुछ शब्दों में कैसा रोष
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