समंदर तू मुझे अपनी यही गहराइयाँ देदे,
तेरी मोजों की ये सिलवट यही उचाइयां देदे
बदल जाएगा हर मौसम मगर तू है वही
मुझे अपनी यही आदत यही तन्हाइयां देदे
मुझे अपनी यही आदत यही तन्हाइयां देदे
किसी मंज़र के गुम होने का ग़म नहीं मुझको
पर ये क्या की बदले में मुझे रुस्वाइयां देदे
पर ये क्या की बदले में मुझे रुस्वाइयां देदे
कभी बेलौस मस्ती में कोई तो शाम निकले
लबों के ज़र्द होने तक, कुछ, नई रुबाइयां देदे
लबों के ज़र्द होने तक, कुछ, नई रुबाइयां देदे
1 comment:
क्या कहने.. बहुत सुंदर
बदल जाएगा हर मौसम मगर तू है वही
मुझे अपनी यही आदत यही तन्हाइयां देदे
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