हा
मुझ को भी हो जाना है
साधक विलीन ...
स्वच्छंद ....निश्छल
स्वाधीन !
बंधन में बंधना
क्या हो जाना है
लक्ष्य विहीन
कैसे हो जाता कोई साधक
है स्वप्निल जीवन अर्थहीन ....
जो साधन पथ पर लेता
अपनों से
सुख छीन... !
हा
मैं तो हूँ साधक,
नहीं मुझ में भावना... हीन
कर्त्तव्य मार्ग के रश्मि रथ पर हूँ आसीन .....
मैं साधक विलीन !
5 comments:
बहुत सुन्दर...बधाई
नहीं मुझ में भावना... हीन
कर्त्तव्य मार्ग के रश्मि रथ पर हूँ आसीन ...
Bahut Sunder....
bahut sundar rachana
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल
हां , मैं तो हूं साधक,
नहीं मुझ में भावना...
हीन कर्त्तव्य मार्ग के रश्मि रथ पर हूं आसीन .....मैं साधक विलीन !
बहुत सुंदर !
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर...बधाई
Post a Comment