खिलखिलाओ मन
सृजन का बीज बोया
आज मैनें
हो रही पुलकित किरण ये
मुझ से मिलने आ रही
बादलों की ओट चंचल
प्रिय सी शरमा रही
गुनगुनाओ मन
जगाया भाग्य सोया
आज मैनें
खेत में बिखरी हुई जो
फसल पर इठ्ला रही
सिन्दूरी यह लालीमा
ठिठुरी धरा को भा रही
बहलजाओ मन
है पाया था जो खोया
आज मैनें
नींद से जागी अभी
नव कोपलें अलसा रही
ऋणी हो कोयल कहीं
नवगीत कोइ गा रही
ठहर जाओ मन
धरा पर सुख संजोया
आज मैनें..........
2 comments:
बहुत ही खुबसूरत
और कोमल भावो की अभिवयक्ति...
संगीत माय सुन्दर रचना
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