Saturday, January 21, 2012

किरण

खिलखिलाओ मन
सृजन का बीज बोया
आज मैनें

हो रही पुलकित किरण ये
मुझ से मिलने आ रही
बादलों की ओट चंचल
प्रिय सी शरमा रही
गुनगुनाओ मन
जगाया भाग्य सोया
आज मैनें

खेत में बिखरी हुई जो
फसल पर इठ्ला रही
सिन्दूरी यह लालीमा
ठिठुरी धरा को भा रही
बहलजाओ मन
है पाया था जो खोया
आज मैनें

नींद से जागी अभी
नव कोपलें अलसा रही
ऋणी हो कोयल कहीं
नवगीत कोइ गा रही
ठहर जाओ मन
धरा पर सुख संजोया
आज मैनें..........

2 comments:

विभूति" said...

बहुत ही खुबसूरत
और कोमल भावो की अभिवयक्ति...

Mamta Bajpai said...

संगीत माय सुन्दर रचना

www.hamarivani.com