हूँ शून्यता में खोजता मैं,
एक नई ही प्रेरणा..
मैं प्रश्न हूँ ,विचार हूँ,
या स्मृति की वेदना...
हाँ !मैं पंख हूँ और मुझे,
विलोम कण है भेदना..
या त्रुटि शूल हूँ मैं,
स्वयं ही को छेदता
सुवास हूँ मैं रंग हूँ,
विहग की हूँ चेतना,
ग्लानि नहीं,हूँ प्रयास,हूँ
भंवर मधु से खेलता...
विश्वास हूँ मैं राम हूँ,
भक्त की हूँ प्रार्थना..
मृत्यु नहीं, जीवन नहीं,हूँ
गृहस्थ मैं सन्यास सा....!
2 comments:
विश्वास हूँ मैं राम हूँ,
भक्त की हूँ प्रार्थना..
मृत्यु नहीं, जीवन नहीं,हूँ
गृहस्थ मैं सन्यास सा....!
आध्यात्मिकता को दर्शाती अच्छी पंक्तियाँ...
एक अतृप्त सी प्यास,अस्तित्व की वही तलाश,द्वैत और अद्वैत का वही द्वन्द.
श्रेष्ठ और सुन्दर अभिव्यक्ति. शुभकामनाये.
-युगल गजेन्द्र
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