सभी कर्मयोगी थे
मैं न जाने कैसे
शिथिल सी बन
इधर उधर गिरती पड़ती बैठी बैठी
अनगिनत स्वप्न
...बुन चली
और मार्ग मार्ग पर कठिनाई का
एक चिट्ठा तक लिख डाला
और नाम दे दिया
मेरी 'कविता '
क्या कविता का सृजन
मात्र इतना भर था ....?
या फिर सृष्टि की उत्पत्ति जितना
ही
क्लिष्ट ?
या वृक्ष की छाया जैसा
नदिया की कल कल
बगिया में कुमुद कुमुद लहराती
मधुर मनचली सुगन्धित बेला ..ज्यों
..सरल ?
जैसा भी था
मेरी अनुभूति का सुखद अनुभव
अंजुरी भर मेरे स्वप्न .....
फिर भी कर्मठ थी
.... 'कविता'....
मैं न जाने कैसे
शिथिल सी बन
इधर उधर गिरती पड़ती बैठी बैठी
अनगिनत स्वप्न
...बुन चली
और मार्ग मार्ग पर कठिनाई का
एक चिट्ठा तक लिख डाला
और नाम दे दिया
मेरी 'कविता '
क्या कविता का सृजन
मात्र इतना भर था ....?
या फिर सृष्टि की उत्पत्ति जितना
ही
क्लिष्ट ?
या वृक्ष की छाया जैसा
नदिया की कल कल
बगिया में कुमुद कुमुद लहराती
मधुर मनचली सुगन्धित बेला ..ज्यों
..सरल ?
जैसा भी था
मेरी अनुभूति का सुखद अनुभव
अंजुरी भर मेरे स्वप्न .....
फिर भी कर्मठ थी
.... 'कविता'....
3 comments:
"मेरी अनुभूति का सुखद अनुभव
अंजुरी भर मेरे स्वप्न ....."
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार 10-फरवरी-13 को चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है.
सुन्दर प्रस्तुति
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