खो जाने का डर नहीं
मुझे डर है
सोच न पाने का !
क्या होगा तब
जब दृष्टि की सीमाओं को
लाँघ नहीं पाएगा मन
जब अल्साए सूरज की
किरणों तक को छू न पाएगा
या कि बिन माँ के बच्चों संग
ख़ुद भी बिलख न पाएगा !
... और वो
पंछी की उन्मुक्त उड़ान
या न चाह कर भी
कभी न रुक पाए उस
शापित जीवन का एहसास
...नहीं कर पाया तो ?
होने न होने में मेरे
अंतर क्या
रह जाएगा! ?
मुझे डर है
सोच न पाने का !
क्या होगा तब
जब दृष्टि की सीमाओं को
लाँघ नहीं पाएगा मन
जब अल्साए सूरज की
किरणों तक को छू न पाएगा
या कि बिन माँ के बच्चों संग
ख़ुद भी बिलख न पाएगा !
... और वो
पंछी की उन्मुक्त उड़ान
या न चाह कर भी
कभी न रुक पाए उस
शापित जीवन का एहसास
...नहीं कर पाया तो ?
होने न होने में मेरे
अंतर क्या
रह जाएगा! ?
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