विषैली हो गईं हैं
ज़बाने
सोच
यहाँ तक की
स्मृतियाँ भी
मशीनों पर लगी जंग सी
कडवाहट ही फैली है
अब हर ओर
कितना शोर
और
जो संबंधों में तकनीक
समाई है
सो विलुप्त है अब बचा कूचा
सामंजस्य का बोध
लो अब ढोना
मानवता की मृत
भावनाओं का बोझ
अंत तक .....
ज़बाने
सोच
यहाँ तक की
स्मृतियाँ भी
मशीनों पर लगी जंग सी
कडवाहट ही फैली है
अब हर ओर
कितना शोर
और
जो संबंधों में तकनीक
समाई है
सो विलुप्त है अब बचा कूचा
सामंजस्य का बोध
लो अब ढोना
मानवता की मृत
भावनाओं का बोझ
अंत तक .....
2 comments:
बहुत सटीक भावपूर्ण रचना...
बेहतर अभिव्यक्ति ..
आपकी कलम को शुभकामनायें !
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