Friday, November 25, 2011

नियति...

नियति को भोगना
नियति है तो
क्यूँ रूठना
जूझना हो ....
केवल चलना
नियति के मार्ग पर
नियति को ओढ़ कर
नहीं थकना
कहीं रुकना
है सृजनता
नव बीज बोया ...उसने
नियति में ही
और नियति के
पार भी

Monday, November 21, 2011

आडम्बर...

जब भी मैं कवयित्री हो जाने का
आडम्बर रच रही थी
औरों पर अपनी कविता का
पाठ मढ़ रही थी
वहीँ भीड़ में कुछ चेहरे
ओझिल बोझिल से
प्रश्न करने को बैठे थे
शिथिल से ......
क्या तुम ही जान पाती हो
क्या लिख लाती हो
क्या कह जाती हो
कुछ भावों को
क्लिष्ट शब्दों में लपेटकर
स्वप्न अपने ही समेटकर
यहाँ परोस जाती हो
तुम ही समझाओ हम को
कैसे कह दें तुम को
कवयित्री
क्या है तुम्हारा अपना
अनुभव या अनुभूति ?
है केवल ...नश्वर ...ये स्वर ... !
और बहुत स्वांग...झोली भर !

Thursday, November 3, 2011

आशाओं की लहर....

मेरे मन मंदिर में प्रियवर
आशाओं की लहर जगी है

हिय मेरा था सरल बना यह
पथिक जीवन के पथ पर
छोड़ चूका था आशा क्या
दर्शन देंगे देव विमल
बनकर नीर सरिता बहता
भाव सागर में मिल जाने को
झेला जिसने व्योम से लेकर
पृथ्वी की दुर्गम तृष्णा को

ये मन हो रहा सूखा तरुवर
प्रभु आस हर पहर जगी है

माया मोह ने घेरा डाला
सत्य असत्य में उलझा थोडा
भागा लेकर हिय को मेरे
स्मृति नाम का चंचल घोडा
लौट न पाया बरसों बीते
टूटा सब्र का भी अभिमान
ले मन वीणा भटका वन वन
नित्य नूतन सुर तान

विलम्ब न कर, अब करुणा कर
तृष्णा कैसी ये अधर जगी है ....
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