Monday, April 30, 2012

एक सफ़र ऐसा भी हो

एक सफ़र ऐसा भी हो

न मंजिलें हों

रास्ते ही रास्ते हों
...
पेड़ पत्ती फूल पौधे

आसमानी रंग सारे

कैद हों

विस्तार से

स्मृतियों की

स्लेट पर

गाँव गाँव

देश घर -

विदेश से परे कहीं ....

हों रास्ते ही रास्ते

न मंजिलों के वास्ते

हों दौड़ते भागते ...

हो नया सफ़र हर घड़ी

हर गजर....हो सफ़र ....!
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Sunday, April 15, 2012

ज्योति बिम्ब


हे
अमिट अविकल,
ज्योति बिम्ब
तुम प्रणिता ,...
पावन प्रार्थना
अज्ञान कण का हरण कर
अनंत तम से तारना.....

Friday, April 13, 2012

सरल साश्वत

रहा
सरल साश्वत
प्रेम तुम्हारा
तब भी ,जब
पथिक जीवन
विकल हो
बदला कण कण ....
हर क्षण
रहा मग्न
खोजने में नींव ही को ...!

Thursday, April 12, 2012

"मेघ न बरसा रोया मौन"

मिटटी तो उपजाऊ थी...
पर लुट कर उस में खोया कौन

भूख निगलता
आप ही गलता
सरल भाव सा
सड़े घाव सा
उसे कोई समझाओ जी
मेघ न बरसा रोया मौन
मिटटी तो उपजाऊ थी
पर लुट कर उस में खोया कौन

मूर्छित तन मन
किंचित कण कण
बीज बो रहा
भाग्य सो रहा
कांटो से उसे छुड़ाओ भी
खेत बंजर अमीर हैं लॉन
मिटटी तो उपजाऊ थी
पर लुट कर उस में खोया कौन

Wednesday, April 4, 2012

सरल संवाद

मैंने जब तुम से
सरल संवाद जोड़ा था
कब कहा था
प्राण फूंको
मेरे इस आसक्त...
से संकल्प में .....
अप्राप्य था जो
उसे भी प्राप्त करने की
नवोदित प्रेरणा
क्यूँकर जगाई .... ?

Tuesday, April 3, 2012

ज्ञात है ....

वह सरोवर में जो मयंक अभिज्ञात है
कहीं दूर थोडा
या वह वृक्ष पर स्वर्ण सा पत्ता
जो टूटा ...जुड़ा थोडा
क्या उसी में तुम कहीं छुप कर बैठे हो
इस वायुमंडल में
जहाँ बन जाते हैं स्वप्न के अनेक महल
या फिर उस सुगंध में
जो मंदिर की प्रज्ज्वलित बत्तियों से
मुझ तक पहुंचती है
तुम हो ...यह ज्ञात है
निकट ही .....अन्तरंग कहीं
छुपते छुपाते हो
स्वतः क्यूँ नहीं दृश्य हो जाते हो
या चाहिए तुम को अनगिनत वर्षों का मौन
या असाध्य बने रहने की तुम्हारी प्रवृत्ति
तुम से छूटती ही नहीं ?
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