Thursday, December 22, 2011

मैं क्यूँ लिखूं ....

मैं क्यूँ लिखूं

नए साल में अपवाद पुराने

रोती माएँ

ठंडे चूल्हे

भूखे बच्चे

कुछ लोगों की भ्रष्ट सोच पर

शहीद होते

सैनिक सच्चे



क्यूँ लिखूं मैं

जब जानू ना

सूखे खेत की रूठी हरियाली

अपने घर के एक कोने में

बैठकर पीते....

चाय की प्याली ....

मेरा लिखना भर लौटा देगा

क्या लुटी हुई अस्मिताएं ?

फिर भला क्यूँ कर जाऊं मैं

पाखंडी औपचारिकताएं ?

नए साल में नई सोच एक

मुझ में विकसित कर देना

पीड़ पराई जान सकूँ

बस इतनी सी तो है प्रार्थना

कुछ ना हो तो मेरा कागज़

कोरा ही तुम रहने देना !

11 comments:

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर, बधाई.

पधारें मेरे ब्लॉग पर भी, आभारी होऊंगा.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत सार्थक विचारोत्प्रेरक रचना...
सादर बधाई....

विभूति" said...

बेहतरीन अभिवयक्ति.....

Mamta Bajpai said...

बहुत सुन्दर रचना ..एक बार मेने भी ऐसा ही कुछ लिखा था कुछ अंश पेश करती हूँ

मैं सोचती हूँ ,कुछ लिखू
पर क्या लिखूँ ?कैसे लिखूँ
वो कौन से अल्फाज लूँ
जो आज की कवता लिखूँ
गाँव की कविता लिखूँ
या गीत कुछ किशान के
नीर की सुचिता लिखूँ
या खेत लिखूँ धान के
टूटते नाते लिखूँ या
फूटते आँसू लिखूँ
मैं ........

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

भई बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!

Prakash Jain said...

मुझ में विकसित कर देना

पीड़ पराई जान सकूँ

बस इतनी सी तो है प्रार्थना

कुछ ना हो तो मेरा कागज़

कोरा ही तुम रहने देना !

Bahut Sundar....

www.poeticprakash.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

क्यों लिखूं कह कर भी बहुत कुछ लिख दिया ... सुन्दर प्रस्तुति

vidya said...

बहुत सुन्दर...
सार्थक प्रस्तुति..
बधाई.

Naveen Mani Tripathi said...

नए साल में नई सोच एक

मुझ में विकसित कर देना

पीड़ पराई जान सकूँ
badhai nootan ji ak sundar srijan ke liye abhar.

Amrita Tanmay said...

बहुत बढ़िया अभिवयक्ति...

***Punam*** said...

नए साल में नई सोच एक

मुझ में विकसित कर देना

पीड़ पराई जान सकूँ

बस इतनी सी तो है प्रार्थना

कुछ ना हो तो मेरा कागज़

कोरा ही तुम रहने देना !


bahut sundar....
naya saal...nai soch...!

www.hamarivani.com