Tuesday, July 31, 2012

रास्ते


क्या कभी ये रास्ते
फिर जा सकेंगे ...
उन ढलानों की तरफ
कि जहाँ पर छोड़ आई
मैं
कई क़िस्से
अधूरे ...

Photo: क्या कभी ये रास्ते 
फिर जा सकेंगे ...
उन ढलानों की तरफ 
कि जहाँ पर छोड़ आई 
मैं 
कई क़िस्से
अधूरे ...

कहाँ तक

यहाँ से वहां तक
कहाँ से कहाँ तक
तू हुआ ,ऐ खुदा
ये बता तो ज़रा
इतनी ऊंचाइयां
या वो गहराइयां
... या खला जो नज़र आ रही
दरमियाँ
तू छुपा है भला क्यूँ
सदा इस तरह
हर तरफ हर जगह ...

गंतव्य

गंतव्य एक ही तो
किंतु
कर्तव्य कहाँ एक से
हो रही स्पर्धा ये फिर भी
तो पृथक फल के लिए
न हो सकेगा कभी,
किंचित ,
एक जैसा ही समर्पण
जब नहीं प्रतिबिम्ब एक से
जबकि एक ही तो है दर्पण

Sunday, July 29, 2012

सार्थक ....!



हाँ!
यह भी तो सत्य है,
लिखना पढना ,कुछ भी तो करना नहीं होता...
सब ने कहा,
"समय का विनाश करती हो,
जीवन बिना लक्ष्य के
कैसे निर्वाह करती हो....?"
परन्तु मैं इस प्रश्न का उत्तर दूँ भी क्यूँ
क्यूँ अपने सरल,
संवेदनशील मन पर
लेकर बोझ चलूँ !
हाँ , है मुझे आनंद देता ,
बस ,बैठना....,
चहुँ ओर मंडराते
दृश्यों , स्मृतियों,
विचारों को
सुन्दर गढ़िले शब्दों में
संजोना केवल ...
लगता है सुखमई
..... और सार्थक भी...!!!

Thursday, July 26, 2012

बरखा रानी तुम रूठी हो क्यूँ

बरखा रानी तुम रूठी हो क्यूँ

बादल की घनघोर घटाएँ
जब आई हैं आशा बन कर
निर्विकार कुछ निर्विरोध ही
बिखरो न तुम भी तो मुझ पर
क्या ठानी यह बुझी सी हो क्यूँ
बरखा रानी तुम रूठी हो क्यूँ

गीत सुनाओ न तुम भी तो
घर की मेरे छत पर आकर
टप टप टिप टिप वाद बजाओ
छम छपाक छम राग बनाकर
मनमानी तुम करती हो क्यूँ
बरखा रानी यूं रूठी हो क्यूँ

सूखे तरुवर मिट्टी प्यासी
तृप्त कहाँ है अंतस भी तो
चातक सी वो रिक्त नयन बन
ढूंढ रही हूँ केवल तुम को
बंदनी बन रहती हो क्यूँ
बरखा रानी तुम रूठी हो क्यूँ

Tuesday, July 17, 2012

भ्रमित है

भ्रमित है...
असीमता के ओर छोर से
संघर्षरत ...
विलोम पटल पर,
विकट छंद की बाट जोहता
अलसाता शब्दकोश मेरा....
ऐसे में फिर
हो पाए...
कैसे कविता...?

Saturday, July 7, 2012

चेष्टा

अंतस की विस्तृत
उर्जाओं को
एकत्रित करना न सही ....
ब्रह्माण्ड के
संगठित कणों का
विघटन ही क्यूँ नहीं....
कुछ तो कर ही रहा है मनुष्य
उसे ढूँढने की चेष्टा में .......
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