Tuesday, March 2, 2021

भोर

 कुछ स्वाँस भर शब्द 

बचे रहे हैं मेरे भीतर

नए भोर की नई नवेली 

धड़कन बन कर 

शोर मचाते हूक जगाते क़र्ज़ उठाते

मिट्टी ख़ुशबू प्राण 

समाहित 

हर क्षण भर को जीते जाते

लो पृथ्वी के सब गुण दोष 

कुछ शब्दों में कैसा रोष

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