Saturday, May 12, 2012

जीना है

जीना है
इन्द्रधनुष के पार
व्यापक
दिखता जो
दिव्य जीवन
वैसे ही
और
धरा के साथ बंधकर
ओस की बूँद
जैसे भी
परन्तु कहाँ सुनिश्चित  रहा
अब तक
नियति का सरस खेला
कौन बीज
कैसे बोया जाएगा
बढ़ रहेगा ओट किसकी
और कैसे कब मिलेगा
धूप छाँव का संरक्षण
या असमय
हो जाए भक्षण
कौन जाने ....
मार्ग तो है ही कठिन पर
जी रहा फिर भी कण कण
हो रहा प्रस्फुटित हर क्षण
पथिक बन जीने को आतुर
नवांकुर ....

9 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

कौन जाने ....
मार्ग तो है ही कठिन पर
जी रहा फिर भी कण कण
हो रहा प्रस्फुटित हर क्षण
पथिक बन जीने को आतुर
नवांकुर ....

सुंदर अभिव्यक्ति,......

MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

विभूति" said...

यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....

Kailash Sharma said...

बेहतरीन प्रस्तुति...

Suresh kumar said...

Bahut hi khubsurat....

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 21/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति....

सदा said...

बेहतरीन प्रस्‍तुति।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति....
सादर बधाई.

Saras said...

बहुत सुन्दर भाव ...उतनी ही सुन्दर अभिव्यक्ति

www.hamarivani.com