नारी जीवन वृक्ष सा ,व्यर्थ न कर संताप
कितने आंसू पी रहा , एक बेटी का बाप
मान रहा वो आज भी ,लड़की को अभिशाप
नहीं सरल रहना वहां ,हो निश्छल निष्पाप
सब लेकर जीते जहाँ ,अधम सोच की छाप
साधन पथ पर बढ़ चला ,फिर भी मन घबराए
जोत जले जो भक्ति की ,श्याम भी मिल जाए!
मैला इसको तू करे, धरा न कूड़ा दान
आश्रय सबको दे रही ,रखले थोडा मान