Saturday, August 20, 2011

समुन्द्र....

समुन्द्र
अथाह समुन्द्र ,
मुझ को अपने मैं छुपा लेने को आतुर
हाँ ये समुन्द्र मेरा अप्रतिम प्रेमी
अपनी लहरों के जोर से पैरों तले
की मेरे मिट्टी को खिंच कर
मुझको बेजान कर देता...
और दो पल को मैं भी उसके साथ हो लेती
आह!
इतना अनुराग! मेरे लिए!
बस मैं भी सुद बुध खो देती !
यकायक याद आता मुझ को मेरा जीवन
और कुछ चित्र
बस मेरा शरीर मुझ को अपने आप रोकने लगता ,
लहरों से झगड़ता
फिर कहीं से दो हाथ आकर मुझ को थाम लेते
और उन्ही में मैं खुद को भींच कर रो लेती
आह! मेरे प्रियवर !
विरह का विलाप करता समुन्द्र
अपनी लहरों को पटकता
शोर करता
डराता ...और डरता
मुंह को मैं छुपा लेती
और मन में उठती टीस को भी
मूंदी हुई आँखों से प्रिय को प्रार्थना करती
"मेरे मृत शरीर को जब तुम
अग्नि पुर्सो..
मेरी राख भरी हुंडी को सहेज कर
न गंगा में ,न मंदिर,न पहाड़ो पर ,
न रेतो में,
बस इसी समुन्द्र मैं कहीं छोड़ आना
मुझे पता है ये मेरी प्रतीक्षा तब भी करता होगा
इसी प्रीति से मुझे पुकारता होगा

13 comments:

दिगम्बर नासवा said...

लहरों के साथ जीवन की नियति ... बहुत अच्छा लगा आपका कल्पना;लोक ...

रश्मि प्रभा... said...

bahut sare udwelit bhaw ... jinhen samudra hi sanjo sakta hai

डॉ० डंडा लखनवी said...

wah...

डॉ० डंडा लखनवी said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Yashwant R. B. Mathur said...

कल 20/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

खूबसूरती से अभिव्यक्त खयालात...
समुद्र से गहरे भाव...
सादर बधाई...

सदा said...

वाह ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

मेरा मन पंछी सा said...

bahut hi sundar rachana hai.

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 17/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

vidya said...

बहुत खूब...
गहन अभिव्यक्ति प्रेम की...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

समुन्द्र से गहरे भाव .

मेरा मन पंछी सा said...

बहूत सुंदर गहरी भावाभिव्यक्ती ..

Unknown said...

सुन्दर रचना...सादर..

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मेरी कविता:वो एक ख्वाब था

www.hamarivani.com